Saturday, July 9, 2011

सुनो कामायनी.
तुम ह्रदय प्रान्त की वासिनी,तुम सरस भाव की स्वामिनी.
ओ चिंता भाव विनाशिनी
तुम आशा,तुम श्रद्धा,तुम लज्जा, तुम उदात्त काम की वाहिनी,
तुम से रस ब्रहम छलकता था आनंद तुम्ही में रहता था,
तुम सत्य की आख्यायिका,शिव भाव की संवाहिका
तुम सुंदरता की प्रतिमूर्ति,मनु वंश की तुम मातृका
तुमसे डरते थे कलुष भाव,तेरे समक्ष नत अहं भाव.
तुम मुक्ति कैलास की परम गति,मनुज प्रेय की पूर्ण सुगति
.तुम काव्य पुरुष अर्धांगिनी,रस-आतुर मन मधुमलिनी,
किन्तु सुनो कामायनी,
अब वह जय का समय नहीं, शांकर कल्याण का मूल्य नहीं,
अब नहीं प्रसाद गुण ग्राहक मन,
अब नहीं सुमन,अब नहीं सुमन,
अब समय नहीं तेरे मन का,अब काल नहीं उन स्वपनो का,
हैं ध्वस्त दुर्ग आदर्शों के, ढह गई समस्त प्राचीरें सब
अब इस यथार्थ के कटु युग में,संकुल,खंडित आदर्श हुआ,
अब सत्य विवश,शिवता बाधित, अब कलुषित वह सौंदर्य हुआ.
लो मांग विदा सब से सविनय,कर लो प्रयाण हे मानिनी,
लो मांग विदा कामायनी.
सुनो कामायनी.
तुम ह्रदय प्रान्त की वासिनी,तुम सरस भाव की स्वामिनी.
ओ चिंता भाव विनाशिनी
तुम आशा,तुम श्रद्धा,तुम लज्जा, तुम उदात्त काम की वाहिनी,
तुम से रस ब्रहम छलकता था आनंद तुम्ही में रहता था,
तुम सत्य की आख्यायिका,शिव भाव की संवाहिका
तुम सुंदरता की प्रतिमूर्ति,मनु वंश की तुम मातृका
तुमसे डरते थे कलुष भाव,तेरे समक्ष नत अहं भाव.
तुम मुक्ति कैलास की परम गति,मनुज प्रेय की पूर्ण सुगति
.तुम काव्य पुरुष अर्धांगिनी,रस-आतुर मन मधुमलिनी,
किन्तु सुनो कामायनी,
अब वह जय का समय नहीं, शांकर कल्याण का मूल्य नहीं,
अब नहीं प्रसाद गुण ग्राहक मन,
अब नहीं सुमन,अब नहीं सुमन,
अब समय नहीं तेरे मन का,अब काल नहीं उन स्वपनो का,
हैं ध्वस्त दुर्ग आदर्शों के, ढह गई समस्त प्राचीरें सब
अब इस यथार्थ के कटु युग में,संकुल,खंडित आदर्श हुआ,
अब सत्य विवश,शिवता बाधित, अब कलुषित वह सौंदर्य हुआ.
लो मांग विदा सब से सविनय,कर लो प्रयाण हे मानिनी,
लो मांग विदा कामायनी.
कर दो क्षमा कामायनी.

2 comments:

  1. किन्तु सुनो कामायनी,
    अब वह जय का समय नहीं, शांकर कल्याण का मूल्य नहीं,
    अब नहीं प्रसाद गुण ग्राहक मन,
    अब नहीं सुमन,अब नहीं सुमन,
    अब समय नहीं तेरे मन का,अब काल नहीं उन स्वपनो का,
    हैं ध्वस्त दुर्ग आदर्शों के, ढह गई समस्त प्राचीरें सब
    अब इस यथार्थ के कटु युग में,संकुल,खंडित आदर्श हुआ,
    अब सत्य विवश,शिवता बाधित, अब कलुषित वह सौंदर्य हुआ.
    लो मांग विदा सब से सविनय,कर लो प्रयाण हे मानिनी,
    लो मांग विदा कामायनी.
    कर दो क्षमा कामायनी... sreshthtam rachna

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  2. शुक्रिया रश्मि प्रभा जी.

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