Tuesday, December 14, 2010

'पापा,जल्दी आ जाना','अनारकली भर के चली','दम है तो पास कर,वर्ना बरदास कर','पाछी आऊं सा','मेहनत मेरी ,रहमत तेरी','देता है रब,जलते हैं सब,..मालूम नहीं क्यों', 'नेकी कर,जूते खा','क्या देखता है गौर से ,आये हैं इंदौर से','लटक मत पटक दूँगी','सपने मत देख,सामने देख','क्या देख रहा है,अच्छा चल देख ले जल्दी से'.
सड़क-चलते वाहनों के पिछवाड़े(सॉरी,शालीन शब्दों में कहें तो पृष्ठ-भाग पर) लिखे कितने ही ऐसे वाक्य हैं जो हमें रोजमर्रा के जीवन में पढ़ने को मिल जाते हैं.कई बार कुछ अनोखे और अप्रचलित वाक्य भी पढ़ने को मिल जाते हैं जैसे पटनी टॉप की यात्रा के समय उधमपुर के पास खड़े एक ट्रक के पीछे पढ़ा-'अगर माँगने से सितारे मिल जाते तो आज आसमान खली नज़र आता'.इसी तरह एक सर्पिल से ट्रोलर के पीछे पढ़ा-'माफ़ करना,साइड जरा लम्बी चाहिए'तो ड्राइवर की विनम्रता पर आदर सा जाग उठा.इसी तरह एक बार खुद पर शर्म भी आई जब एक मलवाहक टैंक के पास से गुजरते हुए नाक-भौं सिकोड़ ही रही थी कि उसका पिछवाडा मेरे आभिजात्य को जीवन की सचाई भरा पाठ पढ़ा गया जहाँ लिखा था-'नसीब अपना-अपना.'
ज़िन्दगी का फलसफा,रास्तों की जोखिम,जिंदगी की अनिश्चितता,उसमें से गुजरते,रीतते-बीतते आम आदमी का जीवन,उसका स्वभाव और अनुभवों की असलियत जैसी तमाम बातें इन पृष्ठांकित वाक्यों में समाई होती है. रास्तों पे चलते हुए हम अनायास ही और कई बार सायास भी,इन्हें पढ़ कर इनका आनंद लेते हैं,पढ़ कर भूल जाते हैं,अक्सर मुस्कुरा देते हैं और कई बार उदास भी हो जाते हैं जब पढ़ते हैं-'पापा,जल्दी आ जाना,मम्मी याद करती है.'
इन वाक्यों में सर्वाधिक प्रचलित वाक्य है-'बुरी नज़र वाले.....' इस अधूरे वाक्य के पीछे के रिक्त स्थान को वाहन-मालिक अपनी-अपनी रूचि और नज़रिए के मुताबिक पूरा कर लेतें हैं.'तेरा मुँह काला'इस समस्या-पूर्ति में सबसे ज्यादा कम आने वाली पंक्ति है जो हमें हर तीसरे वाहन के पीछे धमकाती नज़र आ जाती है.लेकिन इस के अलावा और भी कई वाक्य हैं जो इस समस्या पूर्ति में सहायक सिद्ध होते हैं.'बुरी नज़र वाले,कडुआ ग्रास खा ले,''बुरी नज़र वाले तेरे बच्चे जियें,बड़े होके तेरा खून पियें'(लो जी,इसे कहते हैं दूरदृष्टि भरी दीर्घकालिक बददुआ.)कोई-कोई मदिरा प्रेमी खून की जगह दारु भी पिला देते हैं,कुछ भले उदारवादी मालिक'क्षमा वीरस्य भूषणं'की तर्ज़ पर 'बुरी नज़र वाले,तेरा भी भला'का उदघोष भी करते चलते हैं.इन पृष्ठ वाक्यों में प्रतिशोध,चिड,विरक्ति,औदात्य जैसी अनेक मानवीय प्रवृतियाँ हमारे सामने आ जाती है जो मानव-मन में स्थायी भाव के रूप में विद्यमान रहती है.
किन्तु पिछले दिनों एक वाहन के पीछे इसी वाक्य का तनिक अलग रूप पढ़ने को मिला जो मेरे लिए बिलकुल नवीन था.पढ़ते ही मन अभिभूत हो गया और वाहन-मालिक के उदात्त,उदार व्यक्तित्व के प्रति नतमस्तक हो गया.अद्भुत क्षमा-शांति औए'बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय'की भावना निहित है इन पंक्तियों में-'ना किसी की नज़र बुरी,ना किसी का मुँह काला,सबका भला करेगा उपर वाला.' मानव-मात्र की स्वस्ति-कामना,कितना विराट जीवन-दर्शन भरा है इस छोटी सी बात में कि ना कोई बुरा है ना इश्वर किसी का बुरा करेगा.किसी के लिए बुरा मत सोचो,दाता सबका भला करेगा,वाह.काश,हम सब,सारी सरकारें,विशेषकर सारे राजनेता ये बात मन के चलें तो क्या बात हो.
गर हम इन दिलचस्प वाक्यों के रंजन-मोद से बाहर आ कर तथास्त दृष्टि से सोचें तो समझ सकते हैं कि जितने बहुरंगी ये वाक्य हैं,उतनी ही इंसानी फितरत हैं.उनके भाव-अभाव,कुंठा-भय हैं.घर से दूर,अपनों से अलग,मौत के जबड़े में गर्दन डाले खतरनाक मोड़ों से गुज़रते वाहन-चालक की जिंदगी की अनिश्चितता,जरा पलक झपकी कि ना मौत के मुँह में समाते समय लगता है ना किसी का हत्यारा बन के सींखचों के पीछे जाते.सुनसान,ठिठुरती रात में टायर फट्ट,काली सूनी रात में डकैतों का डर,जून की दोपहर वाली चिडचिडी उमस में मीलों लम्बा ट्रेफिक जाम,धूल,पसीना उमस,सवारियों की किट-पिट,शोर.लगातार थकती देह को ना भावनात्मक ना ही दैहिक आराम मिले तो इस कुंठित-वंचित दशा में हर आवाज़ एक ही बात कहे ये हो ही नहीं सकता.जब ये बुरी नज़र वाले की अमंगल कामना करते हैं तब उसके पीछे भी यही असुरक्षा-बोध कम करता है आयर ललकारने चिढाने के पीछे भीयही कुंठित होकर उग्र स्वर में निकालता है.बस,कबीर की तरह कुछ हंस आत्माएँ हैं जो इस माया रुपी गंदले सरोवर में भी स्वच्छ कमल की तरह निर्लिप्त भाव से जीती रहतीं है,भीतर से स्नेहसिक्त किन्तु ऊपर से शुष्क.
तो अगली बार जब भी हम इन पृष्ठ वाक्यों को पढ़ें तो पढ़ कर भूल जाने या मुस्कुरा भर देने से आगे बढ़ कर जिन्दगी के फलसफे को समझें या चालक की मानसिकता पर सहानुभूतिपूर्वक गौर करें तो जीवन की एक छोटी सी लेकिन अलग फाँक के निराले स्वाद को चख पाएँगे.

Thursday, October 7, 2010

नारी तू नारायणी.

आज दिवस है स्त्री-शक्ति के नमन का.क्या विश्व के किसी भी देश में नारी के इतने रूपों को इतने दिन तक नमन किया जाता है,जितना हमारे यहाँ?
स्त्री जो विविध रूपा है.
वो माँ बन कर जगत्जननी सर्जक रूपा है तो असत के नाश के समय वह विद्रोही चेतना जो स्वयं को छिन्नमस्ता बनाने में भी नहीं हिचकती.
वो शाश्वत स्त्री जो ज्ञान दायिनी गायत्री है और वही काम रूपा कामख्या जो जीवन के शाश्वत सत्य को समझती,समझाती है.
वह परिवार की पालन कर्त्री करुणामयी अन्नपूर्णा भी है जो अपनों की तृप्ति में ही तृप्त है और वही विकराल काली भी जो अज्ञान के पथ पर जा रहे अपने ही प्रियतम के वक्ष-स्थल पर पग धर के खड़ी हो जाती है.
वो आदि शिक्षिका जो श्वेत वसना शांति रूपा कलाधात्री शारदा है और जो जीवन में अर्थ के मोल को जानकर अपने परिजनों के लिए वैभव दायिनी लक्ष्मी भी है.
ये स्त्री के लिए ही संभव है कि अपनों के लिए वह कोमलांगना होकर भी अशेष हाथ धारण कर के ज्यादा से ज्यादा कार्य स्वयं कर लेती है.गौरी के रूप में शिव की ऊबड़-खाबड़ गृहस्थी को भी संभल रही है जहाँ मूषक-सर्प,मोर-नेवला,बैल एवं हाथी जैसे प्रतिकूल ध्रुवों को भी संभालती है और अपने गैर-दुनियादार पति की विस्फोटक चेतना में बराबर कदम मिलाती हुई उत्तर आधुनिका भी है.विश्व के प्रथम क्लोन(गणेश.) की आविष्कारक वैज्ञानिक भी एवं आज के अमेरिका से ज्यादा शस्त्र-संपन्न भी.जो निविड़ अन्धकार-पुंज सूर्य के भीतर राधा बनकर दमक रही है.और पञ्च तत्व में अग्नि बनकर.
वो स्त्री जो समझती है कि वैभव भी ज्ञान(विष्णु) के चरण में बैठता है और करुण भी काल के विनाश में काली बन के खड़ा हो जाता है.
इतनी मुक्त स्त्री,जिसकी क्षमता के कारण पुरुष सत्ता को झुकना पड़ता है कि वह सिंह जेसे घातक पशु रुपी चित्तवृतियों को साधकर मूढ़ता रुपी उलूक को भी साध लेती है.तब इस पितृ- सत्ता पोषक संसार को उसे गृह,रक्षाऔर वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी देने पड़ते हैं.ये विभाग ऐसे ही किसी को नहीं मिल जाते ये समस्त विश्व का प्रत्येक राष्ट्र जनता है.किन्तु ये आभार चेतना केवल भारतीय संस्कृति में ही मिलती है अन्य कहीं नहीं.
ज्ञान की चैतन्य ज्योति को धारण करने वाली,सिंहारूढा परम आनंद दायिनी अनंतरूपा स्त्री के इस विराट-आनंद पर्व पर सभी मित्रों को मंगलकामनाएं.

नारी तू नारायणी.

आज दिवस है स्त्री-शक्ति के नमन का.क्या विश्व के किसी भी देश में नारी के इतने रूपों को इतने दिन तक नमन किया जाता है,जितना हमारे यहाँ?
स्त्री जो विविध रूपा है.
वो माँ बन कर जगत्जननी सर्जक रूपा है तो असत के नाश के समय वह विद्रोही चेतना जो स्वयं को छिन्नमस्ता बनाने में भी नहीं हिचकती.
वो शाश्वत स्त्री जो ज्ञान दायिनी गायत्री है और वही काम रूपा कामख्या जो जीवन के शाश्वत सत्य को समझती,समझाती है.
वह परिवार की पालन कर्त्री करुणामयी अन्नपूर्णा भी है जो अपनों की तृप्ति में ही तृप्त है और वही विकराल काली भी जो अज्ञान के पथ पर जा रहे अपने ही प्रियतम के वक्ष-स्थल पर पग धर के खड़ी हो जाती है.
वो आदि शिक्षिका जो श्वेत वसना शांति रूपा कलाधात्री शारदा है और जो जीवन में अर्थ के मोल को जानकर अपने परिजनों के लिए वैभव दायिनी लक्ष्मी भी है.
ये स्त्री के लिए ही संभव है कि अपनों के लिए वह कोमलांगना होकर भी अशेष हाथ धारण कर के ज्यादा से ज्यादा कार्य स्वयं कर लेती है.गौरी के रूप में शिव की ऊबड़-खाबड़ गृहस्थी को भी संभल रही है जहाँ मूषक-सर्प,मोर-नेवला,बैल एवं हाथी जैसे प्रतिकूल ध्रुवों को भी संभालती है और अपने गैर-दुनियादार पति की विस्फोटक चेतना में बराबर कदम मिलाती हुई उत्तर आधुनिका भी है.विश्व के प्रथम क्लोन(गणेश.) की आविष्कारक वैज्ञानिक भी एवं आज के अमेरिका से ज्यादा शस्त्र-संपन्न भी.जो निविड़ अन्धकार-पुंज सूर्य के भीतर राधा बनकर दमक रही है.और पञ्च तत्व में अग्नि बनकर.
वो स्त्री जो समझती है कि वैभव भी ज्ञान(विष्णु) के चरण में बैठता है और करुण भी काल के विनाश में काली बन के खड़ा हो जाता है.
इतनी मुक्त स्त्री,जिसकी क्षमता के कारण पुरुष सत्ता को झुकना पड़ता है कि वह सिंह जेसे घातक पशु रुपी चित्तवृतियों को साधकर मूढ़ता रुपी उलूक को भी साध लेती है.तब इस पितृ- सत्ता पोषक संसार को उसे गृह,रक्षाऔर वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी देने पड़ते हैं.ये विभाग ऐसे ही किसी को नहीं मिल जाते ये समस्त विश्व का प्रत्येक राष्ट्र जनता है.किन्तु ये आभार चेतना केवल भारतीय संस्कृति में ही मिलती है अन्य कहीं नहीं.
ज्ञान की चैतन्य ज्योति को धारण करने वाली,सिंहारूढा परम आनंद दायिनी अनंतरूपा स्त्री के इस विराट-आनंद पर्व पर सभी मित्रों को मंगलकामनाएं.

नवरात्रि

Friday, September 24, 2010

कई बार ऐसा होता है कि किसी बहुत अच्छी वस्तु का प्रत्येक पक्ष इतना अच्छा होता है कि उस कि लहर में उसका एक-आध बढ़िया पक्ष उपेक्षित हो जाता है.जब तक कि बहुत ध्यान से ना देखा जाए.इस बात को मैंने फिर से महसूस किया 'रंग दे बसंती' का ये गीत सुनकर.
हम सब जानतें है कि फिल्म बेहद सफल और सच में उत्कृष्ट है.
बेजोड़ निर्देशन,प्रस्तुतीकरण की नवीनता,स्वतान्रता-संग्राम को समसामयिक युवा मन से जोड़ के प्रस्तुत करते विस्तृत एवं जटिल कथानक के बाद भी पटकथा की कसावट आदि के साथ आमिर खान सहित सभी अभिनेताओं का मंजा हुआ अभिनय फिल्म को विश्वसनीय गुणवत्ता देकर हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्म बनता है.
फिल्म का संगीत भी अत्यंत लोकप्रिय हुआ,ए.आर.रहमान के फड़कते संगीत में सजे कर्णप्रिय गीत उन दिनों हर किसी की जुबान पर थे और आज भी खूब बजते है.युवा मन को अभिव्यक्त करते सारे गीत,उनकी मस्ती(मस्ती की पाठशाला...),आक्रोश(खलबली है,खलबली..), उनका जिंदादिल हौसला(मोहे रंग दे बसंती....)और कुछ करने का जुनूँ(सूरज को मैं....रूबरू रोशनी) लिए ये गीत युवा दिलों की धड़कन बन गए थे उन दिनों.
फिल्म की कथा में प्रणय के लिए कोई स्थान था भी नहीं और निर्देशक ने उसे आरोपित भी नहीं किया.लेकिन प्रेम कथा फिल्म में है और फिल्म के निर्णायक द्वंद्व में सहायक है इसलिए कहीं भी फिल्म की कथा मुख्य सिर से छेड़छाड़ नहीं करती.
अब मुद्दे की बात,इस प्रेम-कथा के हिस्से मैं एक गीत भी आया है-"तू बिन बताये,मुझे ले चल कहीं...."गीत लगभग अनसुना रह गया क्योंकि उस बसंती मस्ती की पाठशाला में रंग कर हर दर्शक एक रौशनी से रू-ब-रू था,उस झकझोर देने वाली खलबली में डूबा अन्य सभी भावों से अकुंठ. मैं स्वयं भी उन में से एक थी कई बार इस फिल्म को देख डाला था,बिन्स इस गीत को नोटिस में लिए.
लेकिन लगभग १५दिन पहले इस गीत को सुनते हुए मैंने अनुभव किया कि कितना खूबसूरत गीत है यह.
कोमल प्रणय भावनाओं की गहरी पर अंतर्प्रवाही रूमानियत लिए यह गीत प्रेम में संपूर्ण प्रेम को पाकर सम्पूर्ण हो जाने वाली की उदात्त,अद्भुत शांति को जिस कोमल ठहराव से व्यक्त करती है,वह गीत को रूहानियत के छोर तक ले जाती है.
ए.आर.रहमान की सांगीतिक जादूगरी का यह नवानतम पक्ष है.इतनी नरमी एवं आहिस्तगी से रची ये धुन रहमान के संगीत का सिग्नेचर साइन तो नहीं ही है. के मधुर बोलों(मन की गली,तू फुहारों सी आ,भीग जाये मेरे ख्वाबों का कारवां..) को गायक द्वय ने जिस तन्मयता से गाया है,अनुपम है.
गीत सुनते हुए आँखें बंद कर लीजिये,आप प्रेम की उस निविड़ आध्यात्मिक शांति के लोक में पहुँच जायेंगे जहाँ देह पीछे छूट जाती है.
गायकी के तकनीकी पक्ष की दृष्टि से भी गीत बेमिसाल है,क्योंकि बहुत सारे वाद्य यंत्रों के सहारे के बगैर,लो स्केल पर इतनी धीमी,ठहराव वाली संगीत संरचना में गाना बहुत जटिल होता है कि आपको सहारा देने के लिए वहां कुछ नहीं है औए श्रोता के पास निरणय लेने के लिए पर्याप्त अवकाश है.
बहरहाल,मुझे इन दिनों इसगीत ने अपनी मीठी सुरीली लय और कोमल तान की गिरफ्त में ले रखा है,आप भी आनंद उठाइये एवं अपनी राय भी लिखिए.असहमत हो तब भी.

Wednesday, July 21, 2010

आज जनसत्ता में आलेख पढ़ा.आलेख जिस विषय पर था वो अलग बात है.उसकी १पंक्ति ने मुझे उद्वैलित कर दिया.वक्तव्य लेखक का नहीं किसी नेता(भारत भाग्य विधाता,जय हो)का है कि'अपनी पसंद का साथ केवल वेश्याएं चुनती है.'धन्य हैं हमारे समाज के सारथी और धन्य हैं उनके उदगार .
वक्तव्य अपने आप में इतना हास्यास्पद है कि आप उनके पिछड़े विचारों पर गुस्सा होने किजगह उनकी अज्ञानता पर हंसा जा सकता हाई बाद को चाहे स्त्री कि दारुण दशा पे रो लें.
महोदय,क्या आप मेरा ज्ञानवर्धन करेंगे कि विश्व के किस काल-खंड में स्त्री(चाहे वह देह्जीवा रही हो,नगर वधु से लेके हाई सोसाइटी escorts हो,)इतनी मुक्त रही है कि अपनी देह का ग्राहक अपनी मर्जी से चुन सके?पुरुष सदैव ही उसका स्वामी रहा है कि फिर चाहे भुजबल से तो कभी धनबल से उस का उपभोग कर सके.अंतिम बात मेरी नहीं, घुघूति बासूती की-"कभी आपने 'हसबेंड' और 'एनीमल हसबेंड्री' शब्दों के आपस में सम्बन्ध के बारे में सोचा है "

Friday, July 9, 2010

फ़ुटबाल के इस महाकुम्भ ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है,ये नई बात नहीं है,हर ४ वर्ष में ये होता है वही जुनून,वही जश्न,वही आँसू हर बार देखने ko milatee hai है। इस बार नया क्या? कुछ नहीं बस १ऑक्टोपस ज्योतिष राज हैं।जिस ढक्कन को खोल दें उसकी तकदीर का ढक्कन खुल जाता है.क्या बात है।हम भारतीय तो ही नायक पूजा में पारंगत , हमारा भविष्य कोई बतादे आहा ,और क्या चाहिए hamen ,हम तो हैं ही सपेरों ,भिखारियों और जादू-टोने वाले पिछड़े भारतवंशी।चलो छोडो जी, हम जैसे हैं ठीक हैं लेकिन उन अगड़ों को क्या हुआ ?ये हमारी डगर पे चल के अंध विश्वाशी केसे हो रहे हैं? चलो जाने भी दो यारो, हमें इस से भी क्या?खुद पे बनती है तो सब करना पड़ता है ,मेरी तो एक ही अरदास है ,दो घंटे के लिए वो आक्टोपस मुझे दे दे .एकदम अभी नहीं, वर्ल्ड कप का फाइनल हो ले उसके बाद वापिस ले लें दरअसल कुछ यक्ष प्रश्न हे जो हमारे रामदेव श्याम देव नहीं सुलझा पा रहे, शायद पॉल देव सुलझा सकें।

हाँ तो पाल देव जी, मेरा प्रश्न-

१ वैश्विक गरीबी से अपन को क्या ?भारत की भी चलती रहेगी,मेरी गरीबी कब दूर होगी ?

२ अमेरीका की दादागिरी तो कब से चल रही है, अब ब्रह्मपुत्र को अपनी और मोड़ के चीन ने भी भारत के विरूद्ध पर्यावरण युद्ध का एलान कर दिया कल से दादागिरी भी करेगा, कर लेने दो, जो करेगा सो भरेगा, पाल बाबा आप ये बताओ मेरी बहू के विरूद्ध मेरी दादागिरी कब चलेगी ?

३ सद्दाम हुसैन को तो उसके घृणित कृत्य के लिए खुलेआम फांसी दे दी .चीन का कमुनिस्ट फासीवादी रवैया कब ख़त्म होगा
४ सारी दुनिया में आणविक हथियार धड़ल्ले से बनते हैं ,बेचारा पाकिस्तान तो अमरीका के भरोसे काम चला रहा है, ठीक भी है पञ्चशील क़ी ठठरी कोई कब तक लादे घूम सकता है। अपनी जान सबको प्यारी हे ,जब सारी दुनिया में येही हो रहा है तो हमारे छोटे लल्ला को तमंचा बनाने क़ी इजाज़त काहे नहीं मिलती?पाल बाबा उपाय हो तो बताय देवो ।

५।वैश्विक मंदी कब ख़त्म होगी और राजनीति का भ्रष्ट व्यवसाय मंदी में कब आयेगा?

६ हम जानते हैं भारत से जाति वाद नेता लोग अपने स्वार्थ की खातिर नहीं हटाने देते हैं पर दुनिया से नस्ल वाद कब मिटेगा ये तो बतादो।

७।ये बात कोई ज्यादा मतलब क़ी तो नहीं है फिर भी चाहो तो बता दो - हिंदी के साहित्यकार एक दूसरे क़ी टांग खिंचाई कब बंद करेंगे?

जय बाबा पालदेव क़ी ,जैसी स्पेन क़ी सुनी सबकी सुनना

Thursday, July 8, 2010

सारी दुनिया में आणविक हथियार धड़ल्ले से बनते हैं ,बेचारा पाकिस्तान तो अमरीका के भरोसे काम चला रहा है, ठीक भी है पञ्चशील क़ी ठठरी कोई कब तक लादे घूम सकता है। अपनी जान सबको प्यारी हे ,जब सारी दुनिया में येही हो रहा है तो हमारे छोटे लल्ला को तमंचा बनाने क़ी इजाज़त काहे नहीं मिलती?पाल बाबा उपाय हो तो बताय देवो .
५.वैश्विक मंदी कब ख़त्म होगी और राजनीति का भ्रष्ट व्यवसाय मंदी में कब आयेगा?
६ हम जानते हैं भारत से जाति वाद नेता लोग अपने स्वार्थ की खातिर नहीं हटाने देते हैं पर दुनिया से नस्ल वाद कब मिटेगा ये तो बतादो.
७.ये बात कोई ज्यादा मतलब क़ी तो नहीं है फिर भी चाहो तो बता दो - हिंदी के साहित्यकार एक दूसरे क़ी टांग खिंचाई कब बंद करेंगे?
जय बाबा पालदेव क़ी ,जैसी स्पेन क़ी सुनी सबकी सुनना






हाँ तो पाल देव जी, मेरा प्रश्न- 1

1 वैश्विक गरीबी से अपन को क्या ?भारत की भी चलती रहेगी,मेरी गरीबी कब दूर होगी ?

अमेरीका की दादागिरी तो कब से चल रही है, अब ब्रह्मपुत्र को अपनी और मोड़ के चीन ने भी भारत के विरूद्ध पर्यावरण युद्ध का एलान कर दिया कल से दादागिरी भी करेगा, कर लेने दो, जो करेगा सो भरेगा, पाल बाबा आप ये बताओ मेरी बहू के विरूद्ध मेरी दादागिरी कब चलेगी ?

सद्दाम हुसैन को तो उसके घृणित कृत्य के लिए खुलेआम फांसी दे दी .चीन का कमुनिस्ट फासीवादी रवैया कब ख़त्म होगा

Wednesday, July 7, 2010

फ़ुटबाल के इस महाकुम्भ ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है,ये नई बात नहीं है,हर ४ वर्ष में ये होता है वही जुनून,वही जश्न,वही आँसू हर बार देखने ko milatee hai है। इस बार नया क्या? कुछ नहीं बस १ऑक्टोपस ज्योतिष राज हैं.जिस ढक्कन को खोल दें उसकी तकदीर का ढक्कन खुल जाता है.क्या बात है।हम भारतीय तो ही नायक पूजा में पारंगत , हमारा भविष्य कोई बतादे आहा ,और क्या चाहिए hamen ,हम तो हैं ही सपेरों ,भिखारियों और जादू-टोने वाले पिछड़े भारतवंशी।
चलो छोडो जी, हम जैसे हैं ठीक हैं लेकिन उन अगड़ों को क्या हुआ ?ये हमारी डगर पे चल के अंध विश्वाशी केसे हो रहे हैं? चलो जाने भी दो यारो, हमें इस से भी क्या?
खुद पे बनती है तो सब करना पड़ता है ,मेरी तो एक ही अरदास है ,दो घंटे के लिए वो आक्टोपस मुझे दे दे .एकदम अभी नहीं, वर्ल्ड कप का फाइनल हो ले उसके बाद वापिस ले लें दरअसल कुछ यक्ष प्रश्न हे जो हमारे रामदेव श्याम देव नहीं सुलझा पा रहे, शायद पॉल देव सुलझा सकें।

Friday, June 11, 2010

पिछले दिनों मायामृग ने पुस्तक पर्व के नाम पे जो दुष्कृत्य (?) किया उससे साहित्यिक जगत (??)में भारी उद्वेलन उत्पन्न हुआ और इस प्रकरण पर काफी गंभीर (???) वैचारिक (????) विमर्श(?????) भी हुआ।
अब तो ठंडा भी पड़ने लगा है। फिर आप्त वाक्य या अंतिम टिप्पणी एक लतीफे के रूप में -
एक पति था .पति जैसा( पति परम गुरु )पति। और एक पत्नी थी ,पत्नी जैसी (कार्येषु दासी, क्षमा धरित्री ...)पत्नी। तो दोनों साथ रहते, पत्नी खाना बनाती और पति नुक्स निकालते .(भई विवाह सिद्ध अधिकार जो ठहरा )
एक दिन पत्नी ने अंडा बनाया पति ने प्लेट फैंक दी -किसने कहा अंडा बनाने को ?
अगले दिन पत्नी ने आमलेट बनाया ,पति ने थप्पड़ जमाया -मूर्ख ,किसने कहा आमलेट बनाने को?
अगले दिन पत्नी ने एक प्लेट में उबला अंडा और एक प्लेट में आमलेट बना के रखा, पति ने लात मारी -बेवकूफ ये भी नहीं जानती किस अंडे को उबालना होता है और किस का आमलेट बनाना होता है।
जय हो .

Tuesday, May 4, 2010

Wednesday, March 24, 2010

पिछले दिनों के जनसत्ता में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के बारे में एक बढ़िया विशेषण घरेलू उपयोग के लेखक' पढ़ा. इस सामान्य सी बात के माध्यम से कितनी बड़ी बात कही है लेखक ने।सच कितने बड़े-बड़े लेखक है उनके महान ग्रन्थ भी है जिनका सामाजिक साहित्यिक महत्त्व भी कम नहीं है।
हर देश, काल, संस्कृति में कितने युग,कितने आचार्य,कितने, वाद,कितने सिद्धांत हुए जिन पर ढेरों टीकाएँ,शोध हुए अध्ययन पीठ बने है। होना भी चाहिए,आखिर तो साहित्य समाज का दर्पण है,साहित्य एवं लेखक सहेजनीय धरोहर तो है ही।लेकिन कितने कवि लेखक है जो इतने सहज,सम्प्रेश्नीय एवं रुचिर बोघगामी हैं कि घरेलू उपयोग के हो सकते हैं.कबीर कौन सा बहुत पढ़े लिखे थे पर आज भी जब प्रेम दरिया की गहराई की थाह देनी होती है तब केशव नहीं कबीर याद आते हैं जो हमारे संस्कारों की चादर में वो ताना जोड़ गए हैं जो घर के मर्दाने ,दीवानखाने,में ही नहीं बेधड़क घर के भीतरी चौक में भी वापर लिया जाता है. ऐसे
तुलसी है-कितना महान ग्रन्थ है, पांडित्य की भी कमी नहीं, पर घरेलू मोर्चे पर जब भी जरुरत पड़ी झट से तुलसी का उपयोग ले लिया। इसीलिए राम चाहे उनके अजिर बिहारी हो वो जन-जन अजिर बिहारी हैं-चाहे भूत भगाने को हनुमान चालीसा की जरुरत हो या आरती के साथ कृपालु भज मन की।
वैसे मोटे तौर पर देखा जाए तो भक्ति काल के लगभग सारे कवि घरेलु उपयोग के हैं क्योंकि वे लोक की खादमातीलेकर ही उगे पनपे थे सो उन्हें लोकोपयोगी वृक्ष तो बनना ही था
घरेलू उपयोग के कवियों जो भी खासियत-[ जनरंजन, सादगी, पांडित्य से परहेज, लोक से जुड़ाव आदि] हैं-उन सभी को जिस लेखक में हम इकट्ठा पा सकते हैं वो है-अमीर खुसरो। क्या कहावतें,पहेलियाँ, क्या उलटबांसियाँ, मुरकिया लिखी है कमाल है. उनकी जगह तो घर में अमृतधारा की तरह है।

इसके बाद के कवियों की भी बहुत लम्बी सूची है ,जिसका वर्णन था बार

Wednesday, March 17, 2010

आज जनसत्ता में एक खबर पढ़ी ;कोलकाता की एक यौनकर्मी के १३ वर्षीय बेटे सज्जाक अली ने राष्ट्रीय फूटबाल चेम्पियन शिप की अंडर १४ के सदस्य के तौर पर खेलते हुए बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया।
पढ़ कर मन खट्टा हो गया, ये क्या तरीका है एक उभरते हुए खिलाड़ी की तारीफ करने का।
अपनी रिपोर्ट को प्रभावशाली बनाने के फेर में क्या संवाद दाता ये भी भूल जाते हें कि वो लिख क्या रहे है ?
सज्जाद अली बढ़िया खेला ये क्या उसकी माँ के पेशे का कमाल था, अगर नहीं तो उसका सार्वजनिक वर्णन क्यों?क्या किसी और के साथ ये लिखा जाता है कि डॉक्टर का बेटा बढ़िया खेला या मास्टरनी की बेटी अच्छी खेली?
१३वर्श कि उम्र किशोरावस्था कि सबसे गंभीर उम्र होती है और ऐसे में जबकि एक बालक जो पहले ही अपने सामाजिक जीवन में कई स्तरों पर मखौल उड़ाते विशेषणों में जी रहा है,अपनी कुंठा से ऊपर उठ कर संघर्ष करते हुए एक क्षेत्र विशेष में सिर्फ अपने व्यक्तित्व के बल पर अपनी स्वतंत्र अस्मिता बनाने का प्रयास कर रहा है, यह पढ़ कर उसके कोमल ह्रदय पर क्या प्रभाव पड़ेगा जरा संवेदनशीलता से सोच कर देखे.
आइये, हम सब मीडिया के इस तथाकथित pra shansha कार्य की निंदा करे की भविष्य में ये na हो.

Saturday, February 27, 2010

आखर माया

आखर माया अपरम्पार , जितना डूबा उतना पाया ।
पूरा ककहरा नहीं , न सही . ढाई आखर भी जरुरी नहीं ।
एक आखर , उसकी आंच , उसकी ज्योत तो हम सभी के भीतर सिलगते आवां की तपत में है ।
उसी एक आखर की खोज की है ये सारी माया